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मॉडर्न पेरेंटिंग vs पुरानी परवरिश: कौन बेहतर और क्यों?

Old parenting vs modern parenting

मॉडर्न पेरेंटिंग vs पुरानी परवरिश: कौन बेहतर और क्यों?

बचपन से लेकर बड़े होने तक, माता-पिता की परवरिश का गहरा असर बच्चों के व्यक्तित्व, सोच और आदतों पर पड़ता है। समय के साथ परवरिश के तरीके भी बदलते गए हैं। जहां पुरानी परवरिश अनुशासन, परंपराओं और सख्ती पर आधारित थी, वहीं मॉडर्न पेरेंटिंग स्वतंत्रता, भावनात्मक समझ और संवाद को अधिक महत्व देती है। लेकिन कौन सा तरीका बेहतर है? आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।

1. अनुशासन और आज़ादी: पुरानी और नई परवरिश में अंतर

पुरानी परवरिश:

मॉडर्न पेरेंटिंग:

उदाहरण: अगर बच्चा स्कूल का होमवर्क नहीं कर रहा, तो पुरानी परवरिश में उसे डांट या सजा मिलती, जबकि मॉडर्न पेरेंटिंग में माता-पिता उसे समझाने की कोशिश करेंगे कि यह उसके भविष्य के लिए क्यों ज़रूरी है।

2. शिक्षा और करियर पर प्रभाव

पुरानी परवरिश:

मॉडर्न पेरेंटिंग:

उदाहरण: अगर कोई बच्चा कला में रुचि रखता है, तो पुरानी परवरिश में उसे विज्ञान या कॉमर्स लेने के लिए प्रेरित किया जाता, जबकि मॉडर्न पेरेंटिंग में उसे कला में ही करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

3. भावनात्मक जुड़ाव और संवाद

पुरानी परवरिश:

मॉडर्न पेरेंटिंग:

उदाहरण: अगर कोई बच्चा डिप्रेशन या एंग्जायटी महसूस कर रहा है, तो पुरानी परवरिश में उसे “मजबूत बनने” की सलाह दी जाती थी, जबकि मॉडर्न पेरेंटिंग में उसकी मानसिक स्थिति को समझकर उचित समर्थन दिया जाता है।

4. स्वतंत्रता और निर्णय लेने की क्षमता

पुरानी परवरिश:

मॉडर्न पेरेंटिंग:

उदाहरण: अगर बच्चा विदेश जाकर पढ़ाई करना चाहता है, तो पुरानी परवरिश में माता-पिता इस विचार का विरोध कर सकते थे, जबकि मॉडर्न पेरेंटिंग में इसे खुले दिल से स्वीकार किया जाता है।

5. टेक्नोलॉजी और जीवनशैली में बदलाव

पुरानी परवरिश:

मॉडर्न पेरेंटिंग:

उदाहरण: अगर कोई बच्चा मोबाइल में ज्यादा समय बिताता है, तो पुरानी परवरिश में उसे डांटकर मना कर दिया जाता था, जबकि मॉडर्न पेरेंटिंग में उसके लिए स्क्रीन टाइम निर्धारित किया जाता है।

6. रिश्तों और पारिवारिक मूल्यों में अंतर

पुरानी परवरिश:

मॉडर्न पेरेंटिंग:

उदाहरण: अगर कोई बच्चा शादी के लिए अपनी पसंद बताता है, तो पुरानी परवरिश में माता-पिता इसे अनदेखा कर सकते थे, जबकि मॉडर्न पेरेंटिंग में उसकी भावनाओं को समझकर निर्णय लिया जाता है।

निष्कर्ष: कौन बेहतर है?

कोई भी परवरिश पूरी तरह सही या गलत नहीं होती। पुरानी परवरिश में अनुशासन और नैतिक मूल्यों पर जोर दिया जाता था, जो आज भी महत्वपूर्ण हैं। वहीं, मॉडर्न पेरेंटिंग बच्चों की भावनात्मक और मानसिक भलाई को प्राथमिकता देती है।

संतुलन बनाना आवश्यक है:

  1. बच्चों को अनुशासन सिखाने के साथ उनकी स्वतंत्रता का सम्मान करें।
  2. टेक्नोलॉजी का उपयोग सीमित करें, लेकिन इसे पूरी तरह नकारें नहीं।
  3. पारिवारिक मूल्यों को बनाए रखते हुए बच्चों को अपने फैसले खुद लेने दें।
  4. भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।

अंततः, सबसे अच्छी परवरिश वही है जो बच्चों को आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और जिम्मेदार नागरिक बनाए।

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