रंजना नचियार एक तमिल अभिनेत्री और राजनीतिज्ञ हैं, जिन्होंने ‘इरुंबू थिराई’, ‘नटपे थुनाई’ और ‘अन्नाथे’ जैसी फिल्मों में सहायक भूमिकाएँ निभाई हैं। वह राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक बाला की भतीजी और रामनाथपुरम समस्थानम राजा भास्कर सेतुपति की पोती हैं। उनकी अपनी प्रोडक्शन कंपनी, स्टार गुरु फिल्म प्रोडक्शंस, भी है।
राजनीतिक करियर में, रंजना नचियार ने लगभग आठ वर्षों तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ काम किया और पार्टी की कला और संस्कृति शाखा की सचिव रहीं। हालांकि, 26 फरवरी 2025 को, उन्होंने भाजपा से इस्तीफा देकर अभिनेता विजय की पार्टी, तमिलगा वेत्री कझगम (TVK), में शामिल होने का निर्णय लिया।
अपने इस्तीफे में, रंजना ने भाजपा की त्रिभाषा नीति, द्रविड़ विचारधारा के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण, और तमिलनाडु की उपेक्षा जैसे मुद्दों पर असहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि त्रिभाषा नीति तमिल भाषा और संस्कृति की पहचान को खतरे में डालती है, और भाजपा का राष्ट्रवाद एक संकीर्ण दृष्टिकोण तक सीमित हो गया है, जो सभी भारतीयों के लिए समावेशी नहीं है।
रंजना नचियार का भाजपा से इस्तीफा और TVK में शामिल होना तमिलनाडु की राजनीति में महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, विशेषकर भाषा और क्षेत्रीय पहचान के मुद्दों पर।
Three Language Policy (त्रिभाषा नीति) भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित एक भाषा नीति है, जिसका उद्देश्य शिक्षा प्रणाली में छात्रों को तीन भाषाएँ सिखाना है।
त्रिभाषा नीति का सारांश:
यह नीति पहली बार 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में पेश की गई थी और बाद में 1986 और 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इसे फिर से दोहराया गया।
त्रिभाषा नीति के मुख्य बिंदु:
- प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में तीन भाषाओं को शामिल करना:
- पहली भाषा: मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा
- दूसरी भाषा: हिंदी या अंग्रेजी
- तीसरी भाषा: हिंदी भाषी राज्यों में कोई अन्य भारतीय भाषा, और गैर-हिंदी राज्यों में हिंदी
- उद्देश्य:
- भारत की विविधता को बनाए रखना
- भाषाओं के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना
- छात्रों को वैश्विक स्तर पर सक्षम बनाना
- विवाद:
- दक्षिण भारतीय राज्यों, विशेषकर तमिलनाडु में विरोध: तमिलनाडु में इसे “हिंदी थोपने” के रूप में देखा जाता है। वहाँ द्विभाषा नीति (Two Language Policy) लागू है, जहाँ केवल तमिल और अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जाती है।
- भाजपा सरकार द्वारा 2020 NEP में फिर से लागू करने का प्रयास: गैर-हिंदी राज्यों में इसका फिर से विरोध हुआ।
- कुछ राज्यों की आपत्ति: कई राज्य चाहते हैं कि छात्र अपनी पसंद की तीसरी भाषा चुन सकें, बजाय इसके कि सरकार इसे अनिवार्य करे।
त्रिभाषा नीति का उद्देश्य भाषाओं के बीच संतुलन बनाना और संवाद की अधिक संभावनाएँ खोलना है, लेकिन इसे क्षेत्रीय पहचान के साथ टकराव के रूप में भी देखा जाता है।